डरावनी फिल्में, डरावने सीरीयल या अखबारों और रसालों में भूत-प्रेत की कहानियों से बच्चों के दिमाग में डर डाला जा रहा है। बहादुर बच्चें देश की तरक्की में अहम योगदान दे सकते है और डरपोक बच्चें खुद भी रोगी और जिस समाज में रहेंगे उसे भी रोगी ही बनाएंगे। ज्यादा से ज्यादा रूपया कमाने की होड़ में मनुष्य समाज के प्रति अपना कर्तव्य ही भूल गया है। बच्चों के नाजुक दिमाग में एक बार जो बात बैठ जाएं तो वही मानसिक रोग का कारण भी बन जाती है। रोजाना ऐसी खबरें पढ़ने या सुनने को मिलती है कि तांत्रिक ने बलात्कार कर दिया या बच्चे की बलि दे दी या रूपऐ लेकर भाग गया। एक तरफ सरकार ऐसे अपराधों पर नकेल डालने का दावा करती है और दूसरी तरफ सीरीयल या फिल्मों के जरिए डर या भूत-पे्रत जैसी बातों का बढ़ावा दिया जा रहा है। बार-बार झूठ दिखाया जाए तो वो भी सच महसूस होने लगता है और मनुष्य अंधविश्वासी हो जाता है। ऐसे सीरीयल या फिल्में बनाने वालों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। हर नागरिक का कर्तव्य बनता है कि अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखें या अदालत का दरवाजा खटखटाएं। जागरूक नागरिक होने का कर्तव्य निभाए और समाज को सुधारने मं अपना योगदान दें।
Monday, 18 August 2014
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