Saturday 16 August, 2014

Re: SEX PROBLEM

डरावनी फिल्में, डरावने सीरीयल या अखबारों और रसालों में भूत-प्रेत की कहानियों से बच्चों के दिमाग में डर डाला जा रहा है। बहादुर बच्चें देश की तरक्की में अहम योगदान दे सकते है और डरपोक बच्चें खुद भी रोगी और जिस समाज में रहेंगे उसे भी रोगी ही बनाएंगे। ज्यादा से ज्यादा रूपया कमाने की होड़ में मनुष्य समाज के प्रति अपना कर्तव्य ही भूल गया है। बच्चों के नाजुक दिमाग में एक बार जो बात बैठ जाएं तो वही मानसिक रोग का कारण भी बन जाती है। रोजाना ऐसी खबरें पढ़ने या सुनने को मिलती है कि तांत्रिक ने बलात्कार कर दिया या बच्चे की बलि दे दी या रूपऐ लेकर भाग गया। एक तरफ सरकार ऐसे अपराधों पर नकेल डालने का दावा करती है और दूसरी तरफ सीरीयल या फिल्मों के जरिए डर या भूत-पे्रत जैसी बातों का बढ़ावा दिया जा रहा है। बार-बार झूठ दिखाया जाए तो वो भी सच महसूस होने लगता है और मनुष्य अंधविश्वासी हो जाता है। ऐसे सीरीयल या फिल्में बनाने वालों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। हर नागरिक का कर्तव्य बनता है कि अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखें या अदालत का दरवाजा खटखटाएं। जागरूक नागरिक होने का कर्तव्य निभाए और समाज को सुधारने मं अपना योगदान दें।        



2014-08-14 21:04 GMT+05:30 p p <puriblog7@gmail.com>:

1 खाली ना रहें, क्ंयोेकि खाली रहने से आदमी नकारात्मक ही सोचता है और कभी भूतकाल बारे तो कभी भविष्य बारे। वर्तमान ही जीवन है इसे अच्छा बनाए तो ही आने वाला जीवन अच्छा बन सकता है। कुछ ना कुछ करते रहे।

 2 आदमी अपने दुख आप ही बनाता है, जब उसे मालूम है कि सोचने से कुछ नहीं हो सकता तो फिर भी सोचता है। आदमी इतना तो सोच ही सकता है कि जिसे सोचने से मन दुखी होता हो और मनोदशा खराब होती है तो उस के बारे क्ंयो सोचे।

 4 जीवन में मनोरंजन जरूरी है, फिल्म देखे, हंसी-खुशी के गाने सुने। जिंदगी हंसी में गुजारे, आपको हंसता देख कर परिवार के सदस्य भी खुश होंगे या जिस से भी आप मिलेंगे वो भी आप को खुश देख कर खुश होगा।

 5 किसी का दुख बांटे और किसी की खुशी में शामिल हो। घर में अकेले रहना और कुछ ना करना ही रोगो का सबसे बड़ा कारण है।

 6 आत्मविश्वास से बढ़ कर इस दुनिया में कोई दवाई नहीं। जिसने अपना मन जीत लिया या अपने मन के भटकाव पर काबू पा लिया वो ही विजेता है।

 7. शारिरिक काम जरूर करें, जितना पसीना निकलता है तो आदमी तरोताजा महसूस करता है। सवेरे सैर जरूर करें।

 8. जीवन का असली आनंद होश में रह कर ही उठाया जा सकता है, नशा करके या सोते रह कर नहीं।

 9. परमात्मा के दिए जीवन का भरपूर आनंद उठाएं। परिवार को हर तरह की खुशी देने की कोशिश करें। दुखः सुख में अपना परिवार ही साथ देता है। सुबह का भूला शाम को घर लौअ आए तो भूला नहीं कहलाता। अपनी कोशिशो और अच्छी सोच से जीवन सुखमय बनाएं। आदमी अपने कर्मो से अपना भाग्य खुद बनाता है।



On Thu, Aug 14, 2014 at 8:46 PM, p p <puriblog7@gmail.com> wrote:
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